शनिवार, 16 जुलाई 2016

६.५ कुल के प्रकार

तपो दमो ब्रह्म वित्तं वितानाः पुण्या विवाहाः सततान्नदानमम
येष्वेवैते सप्त गुणा वसन्ति सम्यग्वृत्तास्तानि महाकुलानि।।६.५.१।।

जिन मनुष्यों में तप , अर्थात् समाधि में संलग्न रहने, इन्द्रियों पर संयम रखने , वेदों का स्वयं अध्ययन करने, यज्ञ करने , पवित्र विवाह अर्थात् दूसरी स्त्री पर दृष्टि न रखने , हमेशा अन्नदान करने एवं सदाचार - ये सात गुण निहित होते हैं।  ऐसे पुरुष को उत्तम पुरुष कुल का पुरुष कहते हैं।

येषां न वृत्तं व्यथते न योनिश्र्चित्तप्रसादेन चरन्ति धर्मम्।
ये कीर्तिमिच्छन्ति कुले विशिष्टांत्यत्त्कानृतास्तानि महाकुलानि।।६.५. २।।

जिन व्यक्तियों का अच्छा आचरण कभी भी क्षीण नहीं होता , जो कभी अपने अवगुणों से माता - पिता  को दुःखी नहीं करता , जो हमेशा खुशी मन से धर्म का पालन करता है और जो सदा सत्य बोलता है और असत्य का साथ न देकर अपने वंश का सम्मान बढ़ाता है , वे पुरुष ही उत्तम कुल के हैं।

अनिज्यया कुविवाहैर्वेदस्योत्सादनेन च।
कुलान्यकुलतां यान्ति धर्मस्यातिक्रमेण च।।६.५.३।।

यज्ञ न करने से , निन्दा योग्य कुल में विवाह करने से , वेद , शास्त्र आदि का अपमान करने से एवं धर्म को तोड़ने से उत्तम कुल की महानता भी नष्ट हो जाती है और वह अधम कुल का हो जाता है।

देवद्रव्यविनाशेन ब्रह्मस्वहरणेन च।
कुलान्यकुलतां यान्ति ब्राह्मणातिक्रमेण च ।।६.५.४।।

देवताओं की धन - सम्पदा को नष्ट करने , ब्राह्मणों के धन को छीनने एवं ब्राह्मणों की मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाले पुरुष उत्तम होते हुए भी अधम बन जाते हैं।

ब्राह्मणानां परिभवात्परिवादाच्च भारत।
कुलान्यकुलतां यान्ति न्यासापरहरणेन् च ।।६.५.५।।

हे राजन् ! जो पुरुषों ब्राह्मणों का अनादर करते हैं , निंदा करते हैं और उनकी धरोहर स्वरूप वस्तु का हरण कर लेते हैं।  ऐसे पुरुष उत्तम कुल के होने पर भी निन्दा के पात्र बन जाते हैं।

कुलानि समुपेतानि गोभिः पुरुषतोऽर्थतः।
कुलसंख्यां न गच्छन्ति यानि हीनानि वृत्ततः।।६.५.६।।

यदि किसी कुल के पास गौ , अत्यधिक धन एवं सेवा के लिये बहुत से पुरुष सहायक हैं लेकिन सदाचार से रहित हैं अर्थात् उनका आचरण अच्छा नहीं है , तो ऐसे पुरुष की अच्छे कुल में गणना नहीं की जा सकती है।

वृत्तत्स्त्वविहीनानि कुलान्यल्पधनान्यपि।
कुलसंख्यां च गच्छन्ति कर्षन्ति च महद्यशः।।६.५.७।।

जिन कुलों के पास धन नहीं होता , लेकिन जो सदाचार अर्थात् अच्छे आचरण से सम्पन्न हैं तो धन न होते हुए भी उनकी गिनती उत्तम कुल में की जाती है और वे खूब उन्नति करते हैं।

वृत्तं यत्नेन संरक्षेद्वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः।।६.५.८।।

सदाचार की रक्षा मनुष्यों को यत्नपूर्वक करनी चाहिये।  ऐसा इसलिये कहा गया है ; क्योंकि मनुष्य का धन तो आता है और खत्म भी हो जाता है।  अतः धन सम्पत्ति नष्ट हो जाने पर मनुष्य क्षीण नहीं माना जाता है।  लेकिन यदि वह सदाचार से भ्रष्ट हो गया तो वह मृतक के समान समझा जाता है अर्थात् उसका सब कुछ नष्ट हो जाता है।

गोभिः   पशुभिरश्र्वैश्र्च  कृष्णा च सुसमृद्धया।
कुलानि  न प्ररोहन्ति यानि हीनानि वृत्ततः।।६.५.९।।

जो कुल सदाचार से क्षीण होते हैं वे यदि गाय , पशु , घोड़े और हरे - भरे खेतों से सम्पन्न हैं तो भी वे अपनी उन्नति नहीं कर सकते हैं।

मा नः कुले वैरकृत्कश्र्चिदस्तु राजामात्यो मा परस्वापहारी।
मित्रद्रोही नैष्कृतिकोऽनृती वा पूर्वाशी वा पितृदेवातिथिभ्यः।।६.५.१० ।।

उत्तम कुल वाले की इच्छा होती है कि हमारे कुल में कोई शत्रुतापूर्वक व्यवहार करने वाला न हो , दूसरों के धन का हरण करने वाला , राजा या मंत्री भी न हो , मित्र विद्रोही न हो , छल -कपटी , झूठा , पिता , देवता तथा मेहमानों से पूर्व भोजन करने वाला भी न हो।

सूक्ष्मोऽपि भारं नृपते स्यन्दनो वै शक्त्तो वोढुं न तथान्ये महीजाः।
एवं युक्त्ता भारसहा भवन्ति महाकुलीना न तथान्ये मनुष्याः।।६.५. ११।।

छोटा - सा काठ का रथ भी भार ढो सकता है किन्तु कभी विशाल वृक्षों में भी यह शक्त्ति विद्यमान नहीं होती।  उसी प्रकार उत्तम कुल में जन्म लेने वाले उत्साही पुरुष सब कुछ सहन कर सकते हैं , अन्य पुरुषों में यह सहनशक्त्ति नहीं होती।