बुधवार, 23 मार्च 2016

३.२ पण्डित कौन होता है ?

विदुर उवाच
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आत्मज्ञानं समारम्भस्तितिक्षा धर्मनित्यता।
यमर्थान्नपकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते।।३.२.१।।

१. जिन्हें अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान है। जो धर्मात्मा हैं और धर्म का पालन करते हैं।
२ . जिनमें दुःख झेलने की शक्त्ति है।
३ . जो धन के लोभ मे अपने मार्ग से नही भटकता।

ऐसे ही लोगों को पण्डित या विद्वान कहा जाता है।

निषेवते प्रशस्तानी निन्दितानि न सेवते।
अनास्तिकः श्रद्दधान एतत्पण्डितलक्षणम्।।३.२.२।।

१. जो सदैव अच्छे कर्मों को करता है तथा निन्दित बुरे कर्मों से दूर रहता है।
२. जो आस्तिक  और  श्रद्धालु है।
यही सद्गुण पण्डित होने के लक्षण हैं।

क्रोधो हर्षश्र्च दर्पश्र्च ह्रीः स्तम्भो मान्यमानिता।
यमर्थान्नपकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते।।३.२.३।।

जो पुरूष क्रोध , हर्ष , लज्जा , उद्दंडता और अपने को पूज्य समझने के गर्व में होकर अपने रास्ते से नहीं भटकते , वही पंडित कहलाते हैं।

यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे।
कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते।।३.२.४।।

जिसकी कर्तव्य सलाह और विचार विमर्श को दूसरे लोग नहीं जानते अपितु कार्य पूर्ण होने पर ही उन्हें उनकी योजना का पता चलता है , वही पण्डित कहलाते हैं।

यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः।
समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते।।३.२.५।। 

जिस पुरूष के कार्य में सर्दी - गर्मी , डर - अनुराग , करनी अथवा निर्धनता कोई भी बातें अड़चन नहीं डालती , यानि जिनके कारण वह पुरूष अपने कार्य से पीछे नहीं हटता , वही पण्डित कहलाता है।

यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थावनुवर्तते।
कामादर्थ वृणीते यः स वै पण्डित उच्यते।।३.२.६।।

जो पुरूष सांसारिक होते हुए भी धर्म और अर्थ का ही अनुसरण करता है और जो योग को छोड़कर पुरूषार्थ को ही चुनता है , वही पंडित कहलाता है।

यथाशक्त्ति चिकीर्षन्ति यथाशक्त्ति च कुर्वते।
न किञ्चिदवमन्यन्ते नराः पण्डितबुद्धयः।।३.२.७।।

जो विवेकपूर्ण बुद्धि वाले व्यक्त्ति अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करने की इच्छा रखते हैं  और समता के अनुसार ही कार्य करते भी है और किसी को तुच्छ समझकर निरादर नहीं करते , वही पण्डित है।

क्षिप्रं विजानाति चिरं श्रेणोति विज्ञाय चार्थं भजते न कामात्।
नासम्पृष्टो व्युपयुक्त्ते परार्थे तत्प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य।।३.२.८।।

जो व्यक्त्ति किसी बात को देर तक सुनता है लेकिन जल्दी ही समझ जाता है और बात समझकर उस पर आचरण करता है। जब तक कोई उनसे न पूछे वह दूसरों के बारे में व्यर्थ की बात नहीं कहता।  यह स्वभाव पंडितों की मुख्य पहचान होती है।

नाप्राप्यमभिवाञ्छन्ति नष्टं नेच्छन्ति शोचितुम्।
आपत्सु च न मुह्यान्ति नराः पण्डितबुद्धयः।।३.२.९।।

जो व्यक्त्ति दुर्लभ वस्तु के मिलने की इच्छा नहीं रखते , नष्ट हुयी वस्तु के बारे में सोचकर दुःख नहीं करते और विपत्ति में धैर्य नहीं खोते वही पंडित है।


निश्र्चित्य यः प्रक्रमते नान्तर्वसति क्रर्मणः।
अवन्ध्यकालो  वश्यात्मा स वै पण्डित उच्यते।।३.२.१०।।

जो पहले निश्र्चय कर लेता है फिर कार्य आरम्भ करता है तथा बीच में नहीं छोड़ता व्यर्थ का समय नहीं गंवाता।  जिसने अपने मन को वश में कर लिया है , वही पण्डित है।

आर्यकर्मणि रज्यन्ते भूतिकर्माणि कुर्वते।
हितं च नाभ्यसूयन्ति पण्डिता भरतर्षभ।।३.२.११।।

हे भरतकुल -भूषण ! जो पुरूष श्रेष्ठ कार्यो को करने में रूचि रखते हैं अपने भलाई या हिट चाहने वाले की बुराई नहीं करते वे ही पंडित कहलाते हैं।

न हृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते।
गांगो ह्नद इवाक्षोभ्यो यः स पण्डित उच्यते।।३.२.१२।।

जो आदर पाकर भी प्रसन्न नहीं होते हैं और अपमान होने पर दुःखी नहीं होते हैं ; अपितु गंगाजल के कुण्ड के समान जिसका चित्त सब परिस्थितियों में एक समान रहता है , वही पंडित कहलाता है।

तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम्।
उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते।।३.२.१३।।

जो सभी भौतिक पदार्थों की जानकारी रखता है, सब कामों को करने का तरीका जानता है और सब मनुष्यों की मुसीबतों को दूर करने का उपाय जानता है , सब प्राणियों को समझता है , वही पंडित कहा जाता है।

प्रवृत्तवाक् चित्रकथ ऊहवान् प्रतिभानवान्।
आशुग्रन्थस्य वक्त्ता च यः स पण्डित उच्यते।।३.२.१४।।

जो व्यक्त्ति अपनी बात को अच्छे ढंग से दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करता है तर्कशील और प्रतिभाशाली है , जो ग्रन्थ के तात्पर्य को जल्दी से समझा सकता हो , वही पंडित कहलाता है।

श्रुतं प्रज्ञानुगं यस्य प्रजा चैव श्रुतानुगा।
असम्भिन्नर्यमर्यादः पण्डिताख्यां लभेत् सः।।३.२.१५।।

जिसकी विद्या बुद्धि का अनुसरण करती है और बुद्धि विद्या का तथा जो सदा सही काम करता हो और कभी गलत मार्ग पर न चलता हो अर्थात् अपनी मर्यादा को न भूलकर उसी के अनुसार कार्य करता है , वही पंडित कहलाता है।

अर्थं महान्तमासाद्य विद्यामैश्र्वर्यमेव वा।
विचरत्यसमुन्नद्धो यः स पण्डित उच्यते।।३.२.१६।।

जो अत्यधिक धन , संपत्ति , यश , शक्त्ति तथा विद्या अर्जित करने के बाद भी तनिक गर्व महसूस नहीं करता , नम्रतापूर्वक व्यवहार करता है , वह पण्डित कहलाता है।

३.१ किसकी नींद उड़ जाती है ?

विदुर उवाच
अभियुक्त्तं बलवता दुर्बलं हीनसाधनम्।
हृतस्वं कामिनं चोरमाविशन्ति प्रजागराः।।१।।

विदुरजी ने कहा : महाराज ! इन व्यक्त्तियों की नींद उड़ जाती है -
१. जिसका किसी बलवान के साथ विरोध हो गया हो।
२. जो स्वयं दुर्बल हो।
३. जो साधनहीन हो।
४. जिसका सब कुछ हर लिया गया हो।
५. काम - वासनाओं में लिप्त हो तथा चोर भी हो।

ऐसे ही लोगों को रात में जागने का रोग लग जाता है।