रविवार, 17 अप्रैल 2016

३.३५ मनुष्य और उन्नति

दानं होमं दैवतं मंगलानि प्रायश्र्चित्तान् विविधांल्लोकवादान्।
एतानि यः कुरुते नैत्यकानि तस्योत्थानं देवता राधयन्ति।।३.३५।। 

जो व्यक्त्ति दान , होम , देवपूजन , माङ्गलिक कार्य , प्रायश्र्चित तथा नाना प्रकार के लौकिक आचार योग्य कार्यों को करता है।  देवता भी उस व्यक्त्ति के उन्नति की इच्छा करते हैं।

३.३४ श्रेष्ठ मनुष्य

दम्भं मोहं मत्सरं पापकृत्यं राजद्विष्टं पैशुनं पूगवैरम्।
मत्तोन्मत्तैर्दुर्जनैश्र्चापि वादं यः प्रज्ञावान् वर्जयेत्स प्रधानः।।३.३४।। 

जो व्यक्त्ति दम्भ , विषयों में मोह , ईर्ष्या , पापयुक्त्त काम , राजा से बैर , दूसरे लोगों की निन्दा , समूह से वैर - भाव , पागलपन , मतवालापन और दुर्जनों के साथ शत्रुता छोड़ देता है , ऐसा मनुष्य श्रेष्ठ होता है।