बुधवार, 20 अप्रैल 2016

३.४० लज्जा

य आत्मनापत्रपते भृशं नरः स सर्वलोकस्य गुरुर्भवत्युत्।
अनन्ततेजाः  सुमनाः समाहितः स तेजसा सूर्य इवावभासते।।३.४०।।

जो स्वयं लज्जालु है , वह सब लोगों में श्रेष्ठ समझा जाता है।  वह अपने तेज , शुद्ध हृदय  और एकाग्रता से युक्त्त होने के कारण सूर्य की कांति के भांति सुशोभित होता है।

३.३९ यश

यः सर्वभूतप्रशमे निविष्टः सत्यो मृदुर्मानकृच्छुद्धभावः।
अतीव स ज्ञायते ज्ञातिमध्ये महामणिर्जात्य इव प्रसन्नः।।३.३९।।

जो मनुष्य सभी लोगों को शांति प्रदान करने वाले कार्यों को करता है , सत्य बोलता है , कोमल हृदय वाला है , दूसरों का आदर करता है , शुद्ध विचार वाला होता है , वह अच्छी खान से निकले हुए और चमकते हुए रत्न के समान अपनी जाति वालों में यश प्राप्त करता है।