य आत्मनापत्रपते भृशं नरः स सर्वलोकस्य गुरुर्भवत्युत्।
अनन्ततेजाः सुमनाः समाहितः स तेजसा सूर्य इवावभासते।।३.४०।।
जो स्वयं लज्जालु है , वह सब लोगों में श्रेष्ठ समझा जाता है। वह अपने तेज , शुद्ध हृदय और एकाग्रता से युक्त्त होने के कारण सूर्य की कांति के भांति सुशोभित होता है।
अनन्ततेजाः सुमनाः समाहितः स तेजसा सूर्य इवावभासते।।३.४०।।
जो स्वयं लज्जालु है , वह सब लोगों में श्रेष्ठ समझा जाता है। वह अपने तेज , शुद्ध हृदय और एकाग्रता से युक्त्त होने के कारण सूर्य की कांति के भांति सुशोभित होता है।