बुधवार, 11 जनवरी 2017

६.१३ मोक्ष

अनाश्रिता दानपुण्यं वेदपुण्यमनाश्रिताः।
रागद्वेषविनिर्मुक्त्ता विचरन्तीह मोक्षिणः।।६.१३।।

जो मनुष्य मोक्ष प्राप्त करने की कामना करता है , वह दान तो करता है लेकिन दान के द्वारा जो पुण्य की प्राप्ति होती है , उससे मिलने वाले स्वर्ग की कामना नहीं करता।  वेदों के ज्ञान और अध्ययन द्वारा प्राप्त होने वाले पुण्य का भी आश्रय नहीं लेते। इस प्रकार के मनुष्य ही निष्काम भाव से रोग - द्वेष से रहित होकर मनुष्यों का कल्याण करते हैं तथा इस जगत में अपना जीवन व्यतीत करते हैं।