शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

६.४ पुरुष के प्रकार

भावमिच्छति सर्वस्य नाभावे कुरुते मनः।
सत्यवादी मृदुर्दान्तो यः स उत्तमपूरुषः।।६.४.१।।

जो सभी मनुष्य की कल्याण की कामना रखता हो , जो किसी के अहित का विचार तक मन में न लाता हो , जो सच बोलने वाला हो तथा जो अत्यन्त कोमल स्वभाव का हो , जो जितेन्द्रिय हो अर्थात् इन्द्रियों को जीतने वाला हो , वही मनुष्य को उत्तम पुरुष या श्रेष्ठ पुरुष कहा जाता है।

नानर्थकं सान्त्वयति प्रतिज्ञाय ददाति च।
रन्ध्रं परस्य जानाति यः स मध्यमपूरुषः।।६.४.२।।

जो व्यक्त्ति दूसरों को झूठा दिलासा नहीं देता है , यदि कुछ देने की प्रतिज्ञा लेता है , तो उसे दे देता है एवं जो दूसरों के अवगुणों को जानता है।  ऐसे व्यक्त्ति को मध्यम श्रेणी का मनुष्य कहा जाता है।

दुःशासनस्तूपहतोऽभिशस्तो नावर्तते मन्युवशात्कृतघ्नः।
न कस्यचिन्मित्रमथो दुरात्मा कलाश्र्चैता अधमस्येह पुंसः।।६.४.३।।

जिसका शासन बुरा हो , जिसमें अनेकों अवगुण भरे हों , जो अपने बुरे कर्मों द्वारा शापित हो , जो क्रोध में किसी का भी अहित करने से मुँह न मोड़े , यदि किसी ने उसकी रक्षा की तो भी वह उसके उपकारों को नहीं मानता , किसी से भी मित्रता नहीं करना चाहता है , ऐसा पुरुष बुरी आत्मा वाला होता है।  वह अधम श्रेणी का मनुष्य कहा जाता है।  अतः दुःशासन भी इन सब अवगुणों से युक्त्त अधम पुरुष है।

न श्रद्दधाति कल्याणं परेभ्योऽप्यात्मशंकितः।
निराकरोति मित्राणि यो वै सोऽधमपूरुषः।।६.४.४।।

जिस व्यक्त्ति को स्वयं पर विश्र्वास नहीं होता अर्थात् जो अपने ही ऊपर शंका करते हैं वे दूसरों द्वारा कल्याण किये जाने पर भी उनके ऊपर विश्र्वास नहीं करता , मित्रों को भी निंदक कार्यों को करके दूर रखता है अर्थात् उसके मित्र उसके बुरे कर्मों को देखकर उसका त्याग कर देते हैं।  ऐसे मनुष्य को अधम पुरुष कहते हैं।

उत्तमानेव सेवेत प्राप्तकाले तु मध्यमान्।
अधमांस्तु नसेवेत य इच्छेद्भूतिमात्मनः।।६.४.५।।

जो व्यक्त्ति अच्छे कर्मों द्वारा संसार में अपनी उन्नति करना चाहता है , तो वे व्यक्त्ति उत्तम पुरुष अर्थात् सज्जनों की सेवा करें।  यदि आवश्यकता पड़े तो मध्यम पुरुष की भी एक समय पर सेवा कर ले ; किन्तु अधम पुरुषों की कभी भी सेवा मत करें।

प्राप्नोति वै वित्तमसद्बलेन नित्योत्थानात्प्रज्ञया पौरुषेण।
न त्वेव सम्यग्लभते प्रशंसां न वृत्तमाप्नोति महाकुलानाम्।।६.४.६।।

दुर्जन व्यक्त्ति भले ही अपनी शक्त्ति निरंतर उद्योग , बुद्धि से एवं अपने परिश्रम से धन एकत्र कर सकता है , किन्तु उत्तम श्रेणी के पुरुषों के सम्मान और उनके अच्छे आचरण को वह कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता है; क्योंकि दुर्जन व्यक्त्ति को कभी भी प्रशंसा नहीं होती है।

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