तृणानि भूमिरुदकं वाक् चतुर्थी च सूनृता।
सतामेतानि गेहेषु नोच्छिद्यन्ते कदाचन्।।६.६.१।।
सज्जन मनुष्यों के गृह में चटाई या तृण का आसन , धरती , पानी प्रिय एवं सत्य वाणी -इन चार वस्तुओं की कभी कमी नहीं होती।
श्रद्धया परया राजन्नुपनीतानि सत्कृतिम्।
प्रवृत्तानि महाप्राज्ञ धर्मिणां पुण्यकर्मिणाम्।।६.६.२।।
हे महाबुद्धिमान् राजन् ! पुण्य कार्य करने वाले धर्मात्माओं के यहाँ ये चारों वस्तुऐं श्रद्धापूर्वक सत्कार के लिये उपस्थित की जाती हैं।
सतामेतानि गेहेषु नोच्छिद्यन्ते कदाचन्।।६.६.१।।
सज्जन मनुष्यों के गृह में चटाई या तृण का आसन , धरती , पानी प्रिय एवं सत्य वाणी -इन चार वस्तुओं की कभी कमी नहीं होती।
श्रद्धया परया राजन्नुपनीतानि सत्कृतिम्।
प्रवृत्तानि महाप्राज्ञ धर्मिणां पुण्यकर्मिणाम्।।६.६.२।।
हे महाबुद्धिमान् राजन् ! पुण्य कार्य करने वाले धर्मात्माओं के यहाँ ये चारों वस्तुऐं श्रद्धापूर्वक सत्कार के लिये उपस्थित की जाती हैं।
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