चत्वारि राजा तु महाबलेन वर्ज्यान्याहुः पण्डितस्तानि विद्यात्।
अल्पप्रज्ञैः सह मन्त्रं न कूर्यान्न दीर्घसूत्रैरभसैश्र्चारणैश्र्च।।३.१८.१।।
अल्प बुद्धि वाले , कार्य में देर लगाने वाले , विचार शून्य और स्तुति करने वाले लोगों के साथ राजा को बैठकर कभी सलाह नहीं लेना चाहिये , अपितु राजा को इन चारों महाबली का त्यागकर देना चाहिये। विद्वान् पुरुष ऐसे व्यक्त्तियों को पहचान लें।
चत्वारि ते तात गृहे वसन्तु श्रीयाभिजुष्टस्य गृहस्थ धर्मे।
वृद्धो ज्ञातिरवसन्नः कुलीनः सखा दरिद्रो भगिनी चानपत्या।।३.१८.२।।
हे तात् ! जिस घर में अपने कुटुम्ब का वृद्ध मुसीबत में पड़ा हुआ , उच्च कुल का व्यक्त्ति , निर्धन मित्र तथा संतानहीन बहिन ये चारों रहते हैं। उस घर में सदैव लक्ष्मी का वास रहता है ; क्योंकि बूढ़ा व्यक्त्ति बालकों को आचार -व्यवहार सिखाता है। निर्धन मित्र सदा हित की बात करता है और सन्तानहीन बहिन गृहस्थी के कार्यों को अच्छी प्रकार करती है।
चत्वार्याह महाराज साद्यस्कानि बृहस्पतिः।
पृच्छते त्रिदशेन्द्राय तानीमानि निबोध मे।।३.१८.३.१।।
हे महाराज ! इन्द्र के पूछने पर बृहस्पतिजी ने उनसे जिन चार बातों का शीघ्र फल देने वाला बताया है , उन्हें आप मुझसे सुनिये।
देवतानां च सङ्कल्पमनुभावं च श्रीमताम्।
विनयं कृतविद्यानां विनाशं पापकर्मणाम्।।३.१८.३.२।।
देवताओं का संकल्प , बुद्धिमानों का प्रभाव , विद्वानों की नम्रता तथा पाप करने वालों का विनाश।
चत्वारि कर्माण्यभयंकराणि भयं प्रयच्छन्त्ययथाकृतानि ।
मानाग्निहोत्रमुतमानमौनं मानेनाधीतमुत मानयज्ञः।।३.१८.४।।
चार कर्म मनुष्य को निर्भय बनाता है और जब यह कार्य ठीक से सम्पन्न नहीं होते तो वह भयभीत हो जाता है। वे कर्म हैं - आदरपूर्वक अग्निहोत्र , आदर के साथ मौन धारण का पालन , आदर के साथ विद्या ग्रहण तथा आदरपूर्वक किया गया यज्ञ का अनुष्ठान।
अल्पप्रज्ञैः सह मन्त्रं न कूर्यान्न दीर्घसूत्रैरभसैश्र्चारणैश्र्च।।३.१८.१।।
अल्प बुद्धि वाले , कार्य में देर लगाने वाले , विचार शून्य और स्तुति करने वाले लोगों के साथ राजा को बैठकर कभी सलाह नहीं लेना चाहिये , अपितु राजा को इन चारों महाबली का त्यागकर देना चाहिये। विद्वान् पुरुष ऐसे व्यक्त्तियों को पहचान लें।
चत्वारि ते तात गृहे वसन्तु श्रीयाभिजुष्टस्य गृहस्थ धर्मे।
वृद्धो ज्ञातिरवसन्नः कुलीनः सखा दरिद्रो भगिनी चानपत्या।।३.१८.२।।
हे तात् ! जिस घर में अपने कुटुम्ब का वृद्ध मुसीबत में पड़ा हुआ , उच्च कुल का व्यक्त्ति , निर्धन मित्र तथा संतानहीन बहिन ये चारों रहते हैं। उस घर में सदैव लक्ष्मी का वास रहता है ; क्योंकि बूढ़ा व्यक्त्ति बालकों को आचार -व्यवहार सिखाता है। निर्धन मित्र सदा हित की बात करता है और सन्तानहीन बहिन गृहस्थी के कार्यों को अच्छी प्रकार करती है।
चत्वार्याह महाराज साद्यस्कानि बृहस्पतिः।
पृच्छते त्रिदशेन्द्राय तानीमानि निबोध मे।।३.१८.३.१।।
हे महाराज ! इन्द्र के पूछने पर बृहस्पतिजी ने उनसे जिन चार बातों का शीघ्र फल देने वाला बताया है , उन्हें आप मुझसे सुनिये।
देवतानां च सङ्कल्पमनुभावं च श्रीमताम्।
विनयं कृतविद्यानां विनाशं पापकर्मणाम्।।३.१८.३.२।।
देवताओं का संकल्प , बुद्धिमानों का प्रभाव , विद्वानों की नम्रता तथा पाप करने वालों का विनाश।
चत्वारि कर्माण्यभयंकराणि भयं प्रयच्छन्त्ययथाकृतानि ।
मानाग्निहोत्रमुतमानमौनं मानेनाधीतमुत मानयज्ञः।।३.१८.४।।
चार कर्म मनुष्य को निर्भय बनाता है और जब यह कार्य ठीक से सम्पन्न नहीं होते तो वह भयभीत हो जाता है। वे कर्म हैं - आदरपूर्वक अग्निहोत्र , आदर के साथ मौन धारण का पालन , आदर के साथ विद्या ग्रहण तथा आदरपूर्वक किया गया यज्ञ का अनुष्ठान।
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