पञ्चाग्नयो मनुष्येण परिचर्या प्रयत्नतः।
पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्र्च भरतर्षभ।।३.१९.१।।
हे भरत श्रेष्ठ ! पिता , माता , अग्नि , आत्मा तथा गुरु - व्यक्त्ति को इन पाँचों अग्नियों की यत्नपूर्वक सेवा करनी चाहिये।
पञ्चैव पूजयल्लोके यशः प्राप्नोति केवलम् ।
देवान्पितृन्मनुष्याश्र्च भिक्षूनतिथिपञ्चमान् ।।३.१९.२।।
देवता , पितर , मनुष्य , सन्यासी तथा अतिथि इन पाँचों की पूजा करने वाला व्यक्त्ति संसार में शुद्ध यश प्राप्त करता है।
पञ्चत्वानुगमिष्यन्ति यत्र यत्र गमिष्यसि।
मित्राण्यमित्रा मध्यस्था उपजीव्योपजीविनः।।३.१९.३।।
हे राजन्। आप जहां - जहां जायेंगे , वहाँ - वहाँ मित्र - शत्रु , उदासीन , आश्रय देने वाले और आश्रय पाने वाले व्यक्त्ति आपके पीछे लगे रहेंगे ; क्योंकि ये सदैव व्यक्त्ति के साथ रहते हैं।
पञ्चन्द्रियस्य मर्त्यस्यच्छिद्रं चेदेकमिन्द्रियम्।
ततोऽस्य सवति प्रज्ञा दृतेः पात्रादिवोदकम्।।३.१९.४।।
जिस प्रकार मशक में छेद हो जाने से पानी निकलता है और मशक खाली हो जाता है उसी प्रकार पाँच ज्ञानेन्द्रियों वाले व्यक्त्ति की यदि एक भी इंद्रिय में दोष हो जाये तो उसकी बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्र्च भरतर्षभ।।३.१९.१।।
हे भरत श्रेष्ठ ! पिता , माता , अग्नि , आत्मा तथा गुरु - व्यक्त्ति को इन पाँचों अग्नियों की यत्नपूर्वक सेवा करनी चाहिये।
पञ्चैव पूजयल्लोके यशः प्राप्नोति केवलम् ।
देवान्पितृन्मनुष्याश्र्च भिक्षूनतिथिपञ्चमान् ।।३.१९.२।।
देवता , पितर , मनुष्य , सन्यासी तथा अतिथि इन पाँचों की पूजा करने वाला व्यक्त्ति संसार में शुद्ध यश प्राप्त करता है।
पञ्चत्वानुगमिष्यन्ति यत्र यत्र गमिष्यसि।
मित्राण्यमित्रा मध्यस्था उपजीव्योपजीविनः।।३.१९.३।।
हे राजन्। आप जहां - जहां जायेंगे , वहाँ - वहाँ मित्र - शत्रु , उदासीन , आश्रय देने वाले और आश्रय पाने वाले व्यक्त्ति आपके पीछे लगे रहेंगे ; क्योंकि ये सदैव व्यक्त्ति के साथ रहते हैं।
पञ्चन्द्रियस्य मर्त्यस्यच्छिद्रं चेदेकमिन्द्रियम्।
ततोऽस्य सवति प्रज्ञा दृतेः पात्रादिवोदकम्।।३.१९.४।।
जिस प्रकार मशक में छेद हो जाने से पानी निकलता है और मशक खाली हो जाता है उसी प्रकार पाँच ज्ञानेन्द्रियों वाले व्यक्त्ति की यदि एक भी इंद्रिय में दोष हो जाये तो उसकी बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
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