गुरुवार, 19 मई 2016

५.७ पहचान

तृणोल्कया ज्ञायते जातरूपं वृत्तेन भद्रो व्यवहारेण साधुः।
शूरो भयेष्वर्थकृच्छ्रेषु धीरः कृच्छ्रेष्वापत्सु सुहृदशरचारयश्र्च।।५.७।।

जिस प्रकार जलती हुई आग से सोने का खरापन पहचाना जाता है , उसी तरह व्यक्त्ति के सदाचार से सत्पुरुष की पहचान होती है।  व्यवहार से साधुओं का भय उत्पन्न होने पर शूरवीर का , आर्थिक तंगी आने पर धैर्यवान की और आपत्ति आने पर ही मित्र और शत्रु की परीक्षा होती है।

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