रविवार, 17 अप्रैल 2016

३.३४ श्रेष्ठ मनुष्य

दम्भं मोहं मत्सरं पापकृत्यं राजद्विष्टं पैशुनं पूगवैरम्।
मत्तोन्मत्तैर्दुर्जनैश्र्चापि वादं यः प्रज्ञावान् वर्जयेत्स प्रधानः।।३.३४।। 

जो व्यक्त्ति दम्भ , विषयों में मोह , ईर्ष्या , पापयुक्त्त काम , राजा से बैर , दूसरे लोगों की निन्दा , समूह से वैर - भाव , पागलपन , मतवालापन और दुर्जनों के साथ शत्रुता छोड़ देता है , ऐसा मनुष्य श्रेष्ठ होता है।

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