दानं होमं दैवतं मंगलानि प्रायश्र्चित्तान् विविधांल्लोकवादान्।
एतानि यः कुरुते नैत्यकानि तस्योत्थानं देवता राधयन्ति।।३.३५।।
जो व्यक्त्ति दान , होम , देवपूजन , माङ्गलिक कार्य , प्रायश्र्चित तथा नाना प्रकार के लौकिक आचार योग्य कार्यों को करता है। देवता भी उस व्यक्त्ति के उन्नति की इच्छा करते हैं।
एतानि यः कुरुते नैत्यकानि तस्योत्थानं देवता राधयन्ति।।३.३५।।
जो व्यक्त्ति दान , होम , देवपूजन , माङ्गलिक कार्य , प्रायश्र्चित तथा नाना प्रकार के लौकिक आचार योग्य कार्यों को करता है। देवता भी उस व्यक्त्ति के उन्नति की इच्छा करते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें