रविवार, 17 अप्रैल 2016

३.३५ मनुष्य और उन्नति

दानं होमं दैवतं मंगलानि प्रायश्र्चित्तान् विविधांल्लोकवादान्।
एतानि यः कुरुते नैत्यकानि तस्योत्थानं देवता राधयन्ति।।३.३५।। 

जो व्यक्त्ति दान , होम , देवपूजन , माङ्गलिक कार्य , प्रायश्र्चित तथा नाना प्रकार के लौकिक आचार योग्य कार्यों को करता है।  देवता भी उस व्यक्त्ति के उन्नति की इच्छा करते हैं।

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