बुधवार, 20 अप्रैल 2016

३.४० लज्जा

य आत्मनापत्रपते भृशं नरः स सर्वलोकस्य गुरुर्भवत्युत्।
अनन्ततेजाः  सुमनाः समाहितः स तेजसा सूर्य इवावभासते।।३.४०।।

जो स्वयं लज्जालु है , वह सब लोगों में श्रेष्ठ समझा जाता है।  वह अपने तेज , शुद्ध हृदय  और एकाग्रता से युक्त्त होने के कारण सूर्य की कांति के भांति सुशोभित होता है।

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