स्वास्तीर्णानि शयनानि प्रपन्ना न वै भिन्ना जातु निद्रां लभन्ते।
न स्त्रीषु राजन् रतिमाप्नुवन्ति न मागधैः स्तूयमाना न सूतैः।।६.१५.१।।
जिन मनुष्यों में आपस में फूट रहती है ,उन्हें गद्देदार बिछौने पर सोते हुए भी सुख की नींद नहीं आ सकती। उन्हें नारियों के पास रहकर और सूतमागधों द्वारा हुई स्तुति सुनकर भी प्रसन्नता प्राप्त नहीं होती।
न वै भिन्ना जातु चरन्ति धर्म न वै सुखं प्राप्नुवन्तीह भिन्नाः।
न वै भिन्ना गौरव प्राप्नुवन्ति न वै भिन्नाः प्रशमं रोचयन्ति।।६.१५.२।।
जो मनुष्य आपस में भेद - भाव रखते हैं , वह कभी - भी धर्म का आचरण नहीं करते। इतना ही नहीं उन्हें न कभी सुख प्राप्त होता है और न ही गौरव की प्राप्ति होती है। शांतिपूर्वक बोले हुए वचन भी ऐसे मनुष्यों को अच्छे नहीं लगते।
न वै तेषां स्वदते पथ्यमुक्त्तं योगक्षेमं कल्पते नैव तेषाम्।
भिन्नानां वै मनुजेन्द्र परायणं न विद्यते किञ्चिदन्यद्विनाशात्।।६.१५.३।।
ऐसे मनुष्यों को उनके हिट सम्बन्धी वचन भी बोले जाए तो अच्छे नहीं लगते। इसी प्रकार उनका कल्याण भी नहीं हो पाता। इसलिये जो मनुष्य आपस में भेद - भाव रखते हैं और उनका विनाश के अतिरिक्त्त और कोई गति नहीं है।
न स्त्रीषु राजन् रतिमाप्नुवन्ति न मागधैः स्तूयमाना न सूतैः।।६.१५.१।।
जिन मनुष्यों में आपस में फूट रहती है ,उन्हें गद्देदार बिछौने पर सोते हुए भी सुख की नींद नहीं आ सकती। उन्हें नारियों के पास रहकर और सूतमागधों द्वारा हुई स्तुति सुनकर भी प्रसन्नता प्राप्त नहीं होती।
न वै भिन्ना जातु चरन्ति धर्म न वै सुखं प्राप्नुवन्तीह भिन्नाः।
न वै भिन्ना गौरव प्राप्नुवन्ति न वै भिन्नाः प्रशमं रोचयन्ति।।६.१५.२।।
जो मनुष्य आपस में भेद - भाव रखते हैं , वह कभी - भी धर्म का आचरण नहीं करते। इतना ही नहीं उन्हें न कभी सुख प्राप्त होता है और न ही गौरव की प्राप्ति होती है। शांतिपूर्वक बोले हुए वचन भी ऐसे मनुष्यों को अच्छे नहीं लगते।
न वै तेषां स्वदते पथ्यमुक्त्तं योगक्षेमं कल्पते नैव तेषाम्।
भिन्नानां वै मनुजेन्द्र परायणं न विद्यते किञ्चिदन्यद्विनाशात्।।६.१५.३।।
ऐसे मनुष्यों को उनके हिट सम्बन्धी वचन भी बोले जाए तो अच्छे नहीं लगते। इसी प्रकार उनका कल्याण भी नहीं हो पाता। इसलिये जो मनुष्य आपस में भेद - भाव रखते हैं और उनका विनाश के अतिरिक्त्त और कोई गति नहीं है।
प्रशंसनीय कार्य है।
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