तन्तवोऽप्यायिता नित्यं तनवो बहुलाः समाः।
बहून्बहुत्वादायासान्सहन्तीत्युपमा सताम्।।६.१७.१।।
जिस प्रकार कोमल लतायें जब एक साथ मिल जाती हैं तो बहुत समय तक कई प्रकार के झोंके सहती रहती है, उसी प्रकार सज्जन पुरुष भी कम बलशाली होकर जब कई लोगों के साथ मिल जाते हैं तो वे अधिक बलशाली हो जाते हैं और वे कठिनाइयों को सहने की अधिक क्षमता रखते हैं।
धूमायन्ते व्यपेतानि ज्वलन्ति सहितानि च।
धृतराष्ट्रोल्मुकानीव ज्ञातयो भारतर्षभ् ।।६.१७.२।।
हे भरतश्रेष्ठ धृतराष्ट्र ! जिस प्रकार जलती हुई लकड़ियाँ जब अलग - अलग हो जाती हैं तो वे धुआं देने लगती हैं और जब एक साथ मिल जाती हैं तो पुनः जलने लगती हैं। इसी प्रकार जातिबन्धु भी फूट होने पर कष्ट सहते हैं और जब एक साथ मिल जाते हैं तो सुखपूर्वक रहते हैं।
बहून्बहुत्वादायासान्सहन्तीत्युपमा सताम्।।६.१७.१।।
जिस प्रकार कोमल लतायें जब एक साथ मिल जाती हैं तो बहुत समय तक कई प्रकार के झोंके सहती रहती है, उसी प्रकार सज्जन पुरुष भी कम बलशाली होकर जब कई लोगों के साथ मिल जाते हैं तो वे अधिक बलशाली हो जाते हैं और वे कठिनाइयों को सहने की अधिक क्षमता रखते हैं।
धूमायन्ते व्यपेतानि ज्वलन्ति सहितानि च।
धृतराष्ट्रोल्मुकानीव ज्ञातयो भारतर्षभ् ।।६.१७.२।।
हे भरतश्रेष्ठ धृतराष्ट्र ! जिस प्रकार जलती हुई लकड़ियाँ जब अलग - अलग हो जाती हैं तो वे धुआं देने लगती हैं और जब एक साथ मिल जाती हैं तो पुनः जलने लगती हैं। इसी प्रकार जातिबन्धु भी फूट होने पर कष्ट सहते हैं और जब एक साथ मिल जाते हैं तो सुखपूर्वक रहते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें