चिकीर्षितं विप्रकृत च यस्य नान्ये जनाः कर्म जानन्ति किञ्चित्।
मन्त्रे गुप्ते सम्यगनुष्ठिते च नाल्पोऽप्यस्य च्यवते कश्र्चिदर्थः।।३.३८।।
जिसकी अपनी इच्छा के अनुकूल तथा दूसरों की इच्छा के विरूद्ध कार्य को दूसरे लोग नहीं जान पाते , अपनी बातों को गुप्त रखने और मनचाहे कार्य का सुचारू रूप से संपादन होने के कारण उनके कार्य में बाधा नहीं आ पाती है।
मन्त्रे गुप्ते सम्यगनुष्ठिते च नाल्पोऽप्यस्य च्यवते कश्र्चिदर्थः।।३.३८।।
जिसकी अपनी इच्छा के अनुकूल तथा दूसरों की इच्छा के विरूद्ध कार्य को दूसरे लोग नहीं जान पाते , अपनी बातों को गुप्त रखने और मनचाहे कार्य का सुचारू रूप से संपादन होने के कारण उनके कार्य में बाधा नहीं आ पाती है।
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