गुरुवार, 24 मार्च 2016

३.४ निर्दयी और क्रूर

एकः सम्पन्नमश्नाति वस्ते वासश्र्च शोभनम्।
योऽसंविभज्य भृत्येभ्य को नृशंसतरस्ततः।।३.४।।

जो व्यक्त्ति उत्तम भोजन को अकेले ही ग्रहण करता है।  अच्छे वस्त्रों को अकेले ही पहनता है।  इन वस्तुओं का प्रयोग अपने लोगों को भी नहीं करने देता है अर्थात् अपनी कोई वस्तु किसी के साथ नहीं बांटता है , उससे अधिक निर्दयी और क्रूर कौन है ? अर्थात् कोई नहीं है।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें