गुरुवार, 24 मार्च 2016

३.५ पाप और पापी

एकः पापानि कुरुते फलं भुक्त्ते महाजनः।
भोक्त्तारो विप्रमुच्यन्ते कर्त्ता दोषेण लिप्यते।।३.५।।

पाप तो एक व्यक्त्ति अकेले ही करता है ; परन्तु उसके पाप का मौज बहुत से लोग उड़ाते हैं। जो लोग पाप की कमाई का मौज उड़ाते हैं , वे बच जाते हैं ; क्योंकि पाप करने वाला व्यक्त्ति ही सजा का भागी होता है।

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