इज्याध्ययनदानानि तपः सत्यं क्षमा घृणा।
अलोभ इति मार्गोऽयं धर्मस्याष्टविधः स्मृतः।।५.१२.१।।
यज्ञ करना , वेदाध्ययन , दान , तपस्या , सत्य , क्षमाशीलता , दयालुता और लोभ न होना अर्थात् संतोष - ये आठ धर्म के मार्ग कहे गये हैं।
तत्र पुर्वचतुर्वर्गो दम्भार्थमपि सेव्यते।
उत्तरश्र्च चतुर्वर्गो नामहात्मसु तिष्ठति।।५.१२.२।।
आठ प्रकार के धर्म के मार्ग होते हैं। इनमें से पहले चार कर्म - यज्ञ करना , अध्ययन करना , ज्ञान और तप , इन चारों गुणों का पाखण्ड के लिये सेवन किया जा सकता है। लेकिन अंतिम चार कर्मा - सत्य , क्षमा , दया एवं लोभरहित होना , ये चारों गुण महात्माओं के पास ही होते हैं। अतः जो सज्जन नहीं है उनमें नहीं रह सकते।
अलोभ इति मार्गोऽयं धर्मस्याष्टविधः स्मृतः।।५.१२.१।।
यज्ञ करना , वेदाध्ययन , दान , तपस्या , सत्य , क्षमाशीलता , दयालुता और लोभ न होना अर्थात् संतोष - ये आठ धर्म के मार्ग कहे गये हैं।
तत्र पुर्वचतुर्वर्गो दम्भार्थमपि सेव्यते।
उत्तरश्र्च चतुर्वर्गो नामहात्मसु तिष्ठति।।५.१२.२।।
आठ प्रकार के धर्म के मार्ग होते हैं। इनमें से पहले चार कर्म - यज्ञ करना , अध्ययन करना , ज्ञान और तप , इन चारों गुणों का पाखण्ड के लिये सेवन किया जा सकता है। लेकिन अंतिम चार कर्मा - सत्य , क्षमा , दया एवं लोभरहित होना , ये चारों गुण महात्माओं के पास ही होते हैं। अतः जो सज्जन नहीं है उनमें नहीं रह सकते।
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