सोमवार, 23 मई 2016

५.१० व्यक्त्ति की शोभा

अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुतं च।
पराक्रमश्र्चाबहुभाषिता च दानं यथाशक्त्ति कृतज्ञता च।।५.१०.१।।

बुद्धि , कुलीनता , इन्द्रियों को वश में रखना , शास्त्रों का अध्ययन , पराक्रम , कम बोलना , सामर्थ्य के अनुसार दान करना तथा दूसरों द्वारा किये गये उपकारों को मानना ये आठ गुण व्यक्त्ति की शोभा में वृद्धि करते हैं।

एतान्गुणांस्तात महानुभावानेको गुणः संश्रयते प्रसह्य।
राजा यदा सत्कुरुते मनुष्यं सर्वान् गुणानेष गुणो विभाति।।५.१०.२।।

हे तात् ! एक गुण ऐसा है , जो इन आठों गुणों से भी महत्त्वपूर्ण है।  वह बलपूर्वक इन सब गुणों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेता है।  वह गुण है - राज सम्मान।  जिस समय राजा किसी व्यक्त्ति का सत्कार करता है , तो राजा का यह एक ही गुण सभी गुणों से बढ़कर शोभायमान होता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें