शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

६.९ चिन्ता

सन्तापाद्भ्रश्यते रूपं सन्तापाद्भ्रश्यते बलम्।
सन्तापाद्भ्रश्यते ज्ञानं सन्तापाद्व्याधिमृच्छति।।६.९.१।।

कष्ट सहने से रूप नष्ट हो जाता है , दुःखी रहने या चिन्ता करने से सामर्थ्य नष्ट हो जाता है , संताप से ज्ञान भ्रष्ट हो जाता है तथा संताप या चिन्ता करने से पुरुष अनेक रोगों से घिर जाता है।

अनवाप्यं च शोकेन शरीरं चोपतप्यते।
अमित्राश्र्च प्रहृष्यन्ति मा स्म शोके मनः कृथाः।।६.९.२।।

यदि व्यक्त्ति चिन्ता में लगा रहता है , तो उसे मनचाही वस्तु कभी प्राप्त नहीं होती , बल्कि चिन्ता करने से मनुष्य का शरीर खत्म हो जाता है।  ऐसा होने से उसके शत्रु को प्रसन्नता होती है , इसलिये शोक नहीं करना चाहिये।

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