शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

६.११ इन्द्रियां

चलानि हीमानि षडिन्द्रियाणि तेषां यद्यद्वर्धते यत्र यत्र।
ततस्ततः स्रवते बुद्धिरस्य चिद्रोदकुम्भादिव नित्यमम्भः।।६.११।।  

मनुष्य की पाँचों इन्द्रियां एवं छठा मन बहुत ही चंचल होता है।  इनमें से जो इन्द्रियां जिस -जिस विषय की ओर बढ़ती है , उस - उस  जगह पर मनुष्य की बुद्धि उसी तरह नष्ट हो जाती है , जिस तरह फूटे घड़े से जल टपकता रहता है।   

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