सोमवार, 28 मार्च 2016

३.१३ विश्र्वास

द्वाविमौ पुरुषव्याघ्र परप्रत्ययकारिणौ।
स्त्रियः कामितकामिन्यो लोकः पूजितपूजकः।।३.१३।।

जिस पुरुष को कोई स्त्री चाहती थी उस पुरुष को चाहने वाली स्त्रियां और दूसरों के द्वारा पूजित मनुष्य का आदर करने वाले पुरुष , ये दोनों पर विश्र्वास करने वाले होते हैं।  इनके पास अपनी बुद्धि नहीं होती है।

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