सोमवार, 28 मार्च 2016

३.१२ आदर और सम्मान

द्वे कर्मणी नरः कुर्वन्नस्मिंल्लोके विरोचते।
अब्रुवन पुरुषं किञ्चिदसतोऽनर्चयस्तथा।।३.१२।।   

जो पुरुष कठोर वचन नहीं बोलता है दुष्ट पुरुषों का आदर -सत्कार या संगति नहीं करता है।  इन दो कर्मों को करने वाले मनुष्य को ही आदर और सम्मान प्राप्त होता है।

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