द्वे कर्मणी नरः कुर्वन्नस्मिंल्लोके विरोचते।
अब्रुवन पुरुषं किञ्चिदसतोऽनर्चयस्तथा।।३.१२।।
जो पुरुष कठोर वचन नहीं बोलता है दुष्ट पुरुषों का आदर -सत्कार या संगति नहीं करता है। इन दो कर्मों को करने वाले मनुष्य को ही आदर और सम्मान प्राप्त होता है।
अब्रुवन पुरुषं किञ्चिदसतोऽनर्चयस्तथा।।३.१२।।
जो पुरुष कठोर वचन नहीं बोलता है दुष्ट पुरुषों का आदर -सत्कार या संगति नहीं करता है। इन दो कर्मों को करने वाले मनुष्य को ही आदर और सम्मान प्राप्त होता है।
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