मंगलवार, 24 मई 2016

५.२० संचय

सुवर्णपुष्पां पृथिवीं चिन्वन्ति पुरुषास्त्रयः।
शूरश्र्च कृतविद्यश्र्च यश्र्च जानाति सेवितुम्।।५.२०।।

शूरवीर , विद्वान् और सेवा धर्म के मर्म को जानने वाला , ये तीन तरह का मनुष्य धरती से सोने के समान सुन्दर पुष्पों का संचय करते हैं।

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