मंगलवार, 22 मार्च 2016

२.३० नरक

यक्ष उवाच
अक्षयो नरकः केन प्राप्यते भरतर्षभ्।
एतन्मे पृच्छतः प्रश्नं तच्छीघ्रं वक्त्तुमर्हसि।।२.३०.१।।

हे भरत! किस काम को करने से व्यक्त्ति नरक के द्वार में जाता है।  मेरे इस प्रश्न का शीघ्रतापूर्वक उत्तर दीजिये।

युधिष्ठिर उवाच
ब्राह्मणं स्वयमाहूय याचमानमकिञ्जनम्।
पश्र्चान्नास्तीति यो ब्रूयात्सोऽक्षयं नरकं व्रजेत्।।२.३०.२।।

भिक्षा मांगने आए गरीब ब्राह्मण को स्वयं ही प्रथम कुछ देने हेतु बुलाए एवं बाद में देने से मना कर दे , तो वही अक्षय नरक में स्थान पाता है।

वेदेषु धर्मशास्त्रेषु मिथ्या यो वै द्विजातिषु।
देवेषु पितृधर्मेषु सोऽक्षयं नरकं व्रजेत्।।२.३०.३।।

जो व्यक्त्ति वेदों , धर्मशास्त्रों , ईश्र्वर तथा पितृधर्म को मानने से मना कर देता है , वह व्यक्त्ति नरक में निवास करता है।

विद्यमाने धने लोभाद्दानभोगविवर्जितः।
पश्र्चान्नास्तीतियोब्रूयात्सोऽक्षयं नरकं व्रजेत्।।२.३०.४।।

लक्ष्मी समीप रहने पर भी जो व्यक्त्ति न ही किसी को दान करता है तथा न ही धन का उपयोग स्वयं करता है एवं दान करूँगा , इस प्रकार के वचन को कहकर बाद में इनकार कर देता है , वह अक्षय नरक में वास करता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें