यक्ष उवाच
को मोहः प्रोच्यते राजन् कश्र्च मानः प्रकीर्तितः।
किमालस्यं च विज्ञेयं कश्र्च शोकः प्रकीर्तितः।।२.२५.१।।
हे राजन् ! मोह क्या है ?
अभिमान क्या है ?
आलस्य क्या है ?
शोक अर्थात् दुःख क्या है ?
युधिष्ठिर उवाच
मोहो हि धर्ममूढत्वं मानस्त्वात्माभिमानिता।
धर्मनिष्क्रियतालस्यं शोकस्त्वज्ञानमुच्यते।।२.२५.२।।
धर्म का अज्ञान ही मोह है।
अपने आपको सबसे उत्तम समझना ही मान है।
धर्माचरण न करना ही आलस्य है।
ज्ञान से रहित ही शोक है।
को मोहः प्रोच्यते राजन् कश्र्च मानः प्रकीर्तितः।
किमालस्यं च विज्ञेयं कश्र्च शोकः प्रकीर्तितः।।२.२५.१।।
हे राजन् ! मोह क्या है ?
अभिमान क्या है ?
आलस्य क्या है ?
शोक अर्थात् दुःख क्या है ?
युधिष्ठिर उवाच
मोहो हि धर्ममूढत्वं मानस्त्वात्माभिमानिता।
धर्मनिष्क्रियतालस्यं शोकस्त्वज्ञानमुच्यते।।२.२५.२।।
धर्म का अज्ञान ही मोह है।
अपने आपको सबसे उत्तम समझना ही मान है।
धर्माचरण न करना ही आलस्य है।
ज्ञान से रहित ही शोक है।
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