मंगलवार, 22 मार्च 2016

२.२६ ऋषि और श्रेष्ठ

यक्ष उवाच
किं स्थैर्यमृषिभिः प्रोक्त्तं किं च धैर्यमुदाहृतम्।
स्नानं च किं परं प्रोक्त्तं दानं च किमिहोच्यते।।२.२६.१।।

ऋषियों द्वारा कही हुई स्थिरता क्या है ?
उनके द्वारा कही गई धैर्यता कौन - सी है ?
स्नानों में श्रेष्ठ स्नान कौन - सा  है ?
दानों में सबसे बड़ा दान क्या है ?

युधिष्ठिर उवाच
स्वधर्मे स्थिरता स्थैर्यं धैर्यमिन्द्रियनिग्रहः।
स्नानं मनोमलत्यागो दानं वै भूतरक्षणम्।।२.२६.२।।

अपने धर्म में स्थिर रहना ही स्थिरता है।
इन्द्रियों पर संयम रखना ही धैर्य है।
अपने मन के मलों को छोड़ना ही सबसे बड़ा स्नान है।
समस्त प्राणियों की रक्षा करना ही श्रेष्ठ दान है।

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