यक्ष उवाच
धर्मश्र्चर्थश्र्च कामश्र्च परस्परविरोधिनः।
एषां नित्यविरुद्धानां कथमेकत्र संगम्।।२.२९.१।।
धर्म , अर्थ तथा काम ये दूसरे के विरोधी हैं, इन नित्य विरोधियों का एक स्थान पर मिलन अर्थात् संगम कैसे संभव है ?
युधिष्ठिर उवाच
सदा धर्मश्र्च भार्या च परस्परवशानुगौ।
तदा धर्मार्थकामानां त्रयाणामपि संगमः।।२.२९.१।।
जिस समय धर्म एवं स्त्री परस्पर एक -दूसरे के वशीभूत हो जाते हैं , उस समय धर्म , अर्थ एवं कामना का संगम होता है।
धर्मश्र्चर्थश्र्च कामश्र्च परस्परविरोधिनः।
एषां नित्यविरुद्धानां कथमेकत्र संगम्।।२.२९.१।।
धर्म , अर्थ तथा काम ये दूसरे के विरोधी हैं, इन नित्य विरोधियों का एक स्थान पर मिलन अर्थात् संगम कैसे संभव है ?
युधिष्ठिर उवाच
सदा धर्मश्र्च भार्या च परस्परवशानुगौ।
तदा धर्मार्थकामानां त्रयाणामपि संगमः।।२.२९.१।।
जिस समय धर्म एवं स्त्री परस्पर एक -दूसरे के वशीभूत हो जाते हैं , उस समय धर्म , अर्थ एवं कामना का संगम होता है।
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