यक्ष उवाच
प्रियवचनवादी किं लभते विमृशितकार्यकरः किं लभते।
बहुमित्रकरः किं लभते धर्मे रतः किं लभते कथय।।२.३२.१।।
मधुर वाणी बोलने वाले को क्या लाभ मिलता है ?
सोच - विचार कर कर्म करने वाले को क्या मिलता है ?
ढेर सारे मित्र बनाने वाले को क्या लाभ मिलता है ?
धर्म में लगे रहने वाले मनुष्य को क्या मिलता है ?
युधिष्ठिर उवाच
प्रियवचनवादी प्रियो भवति विमृशितकार्यकरोऽधिकं जयति।
बहुमित्रकरः सुखं वसते यश्र्च धर्मरतः स गतिं लभते।।२.३२.२।।
मधुर वाणी बोलने वाला व्यक्त्ति समस्त लोगों का प्रिय होता है।
सब काम सोच-विचारकर करने वाले को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
बहुत सारे मित्र बनाने वाला सुख से रहता है।
धर्म में लगे रहने वाला व्यक्त्ति उत्तम गति को प्राप्त होता है।
प्रियवचनवादी किं लभते विमृशितकार्यकरः किं लभते।
बहुमित्रकरः किं लभते धर्मे रतः किं लभते कथय।।२.३२.१।।
मधुर वाणी बोलने वाले को क्या लाभ मिलता है ?
सोच - विचार कर कर्म करने वाले को क्या मिलता है ?
ढेर सारे मित्र बनाने वाले को क्या लाभ मिलता है ?
धर्म में लगे रहने वाले मनुष्य को क्या मिलता है ?
युधिष्ठिर उवाच
प्रियवचनवादी प्रियो भवति विमृशितकार्यकरोऽधिकं जयति।
बहुमित्रकरः सुखं वसते यश्र्च धर्मरतः स गतिं लभते।।२.३२.२।।
मधुर वाणी बोलने वाला व्यक्त्ति समस्त लोगों का प्रिय होता है।
सब काम सोच-विचारकर करने वाले को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
बहुत सारे मित्र बनाने वाला सुख से रहता है।
धर्म में लगे रहने वाला व्यक्त्ति उत्तम गति को प्राप्त होता है।
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