मंगलवार, 22 मार्च 2016

२.२८ माया

यक्ष उवाच
कोऽहंकार इति प्रोक्त्तः कश्र्च दम्भः प्रकीर्तितः।
किं तद्दैवं परं प्रोक्त्तं किं तत्पैशुन्यमुच्यते ।।२.२८.१।।

अहंकार क्या है ?
दम्भ क्या है ?
भाग्य क्या है तथा कहाँ है ?
चुगली ( पिशुनता ) किसे कहा जाता है ?

युधिष्ठिर उवाच
महाज्ञानमहंकारो दम्भो धर्मो ध्वजोच्छ्रयः।
दैवं दानफलं प्रोक्त्तं पैशुन्यं परदूषणम्।।२.२८.२।।

महाअज्ञान ही अभिमान है।
संसार में अपनी पूजा करवाने हेतु ही धर्म का दम्भ किया जाता है।
पिछले जन्म में किये गये दान का फल ही देव का भाग्य है।
दूसरों के कमजोरियों को बतलाना ही चुगली कहलाता है।

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