यक्ष उवाच
कश्र्च धर्मः परो लोके कश्र्च धर्मः सदाफलः।
किं नियम्य न शोचन्ति कैश्र्च सन्धिर्न जीर्यते।।२.१६.१।।
लोक में उत्तम धर्म क्या है ?
सदैव फलदात्री धर्म क्या है ?
किस पर संयम रखकर व्यक्त्ति दुःख का अनुभव नहीं करता ?
किसके संग की गई मित्रता नहीं छूटती ?
युधिष्ठिर उवाच
आनृशंस्यं परो धर्मस्त्रयीधर्मः सदाफलः।
मनो यम्य न शोचन्ति सन्धिः सदिभर्न जीर्यते।।२.१६.२।।
लोकों में उत्तम धर्म सन्यास लेना है।
हमेशा फलदात्री धर्म यज्ञ है।
अपने मन पर संयम रखके व्यक्त्ति चिन्ता नहीं करता है।
सज्जन व्यक्त्तियों के साथ की गयी मित्रता कभी नहीं छूटती।
कश्र्च धर्मः परो लोके कश्र्च धर्मः सदाफलः।
किं नियम्य न शोचन्ति कैश्र्च सन्धिर्न जीर्यते।।२.१६.१।।
लोक में उत्तम धर्म क्या है ?
सदैव फलदात्री धर्म क्या है ?
किस पर संयम रखकर व्यक्त्ति दुःख का अनुभव नहीं करता ?
किसके संग की गई मित्रता नहीं छूटती ?
युधिष्ठिर उवाच
आनृशंस्यं परो धर्मस्त्रयीधर्मः सदाफलः।
मनो यम्य न शोचन्ति सन्धिः सदिभर्न जीर्यते।।२.१६.२।।
लोकों में उत्तम धर्म सन्यास लेना है।
हमेशा फलदात्री धर्म यज्ञ है।
अपने मन पर संयम रखके व्यक्त्ति चिन्ता नहीं करता है।
सज्जन व्यक्त्तियों के साथ की गयी मित्रता कभी नहीं छूटती।
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