सोमवार, 21 मार्च 2016

२.१७ त्याग

यक्ष उवाच
किं नु हित्वा न प्रियो भवित किं नु हित्वा न शोचति।
किं नु हित्वार्थवान् भवति किं नु हित्वा सुखी भवेत्।।२.१७.१।।

ऐसी क्या चीज़ है जिसे त्यागने से मनुष्य सब लोगों का प्रिय होता है ?
किसका त्याग करने से व्यक्त्ति दुःखी नहीं होता ?
किसका त्याग करने सेव्यक्त्ति अर्थवान् होता है ?
किसका त्याग करने से  व्यक्त्ति सुखपूर्वक रहता है ?

युधिष्ठिर उवाच
मानं हित्वा प्रियो भवति क्रोधं हित्वा न शोचति।
कामं हित्वार्थवान्भवति लोभं हित्वा सुखी भवेत्।।२.१७.२।।

मनुष्य अपने गर्व (अहंकार) का त्याग करने से सब लोगों का प्रिय होता है।
मनुष्य को क्रोध का त्याग करने से शोक नहीं करना पड़ता है।
मनुष्य अपनी अभिलाषाओं का त्याग कर अर्थवान् हो जाता है।
लालच का त्याग कर मनुष्य सुखी हो जाता है।

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