यक्ष उवाच
धन्यानामुत्तमं किंस्विद्धनानां स्यात्किमुत्तमम्।
लाभानामुत्तमं किं स्यात्सुखानां स्यात्किमुत्तमम्।।२.१५.१।।
धन्य लोगों में अत्यधिक श्रेष्ठ धन्य कौन होता है ?
धनों में श्रेष्ठ धन क्या है ?
लाभ में श्रेष्ठ लाभ क्या है ?
सुखों में श्रेष्ठ सुख क्या है ?
युधिष्ठिर उवाच
धन्यानामुत्तमं दाक्ष्यं धनानामुत्तमं श्रुतम्।
लाभानां श्रेय आरोग्य सुखानां तुष्टिरुत्तमा।।२.१५.२।।
धन्य लोगों में वह मनुष्य श्रेष्ठ धन्य है , जिसमें दूसरों के उपकार करने की चतुराई है।
धनों में विद्या श्रेष्ठ धन होती है।
लाभों में रोग मुक्त्त रहना ही श्रेष्ठ लाभ है।
संतुष्ट रहना ही सुखों में सबसे बड़ा सुख है।
धन्यानामुत्तमं किंस्विद्धनानां स्यात्किमुत्तमम्।
लाभानामुत्तमं किं स्यात्सुखानां स्यात्किमुत्तमम्।।२.१५.१।।
धन्य लोगों में अत्यधिक श्रेष्ठ धन्य कौन होता है ?
धनों में श्रेष्ठ धन क्या है ?
लाभ में श्रेष्ठ लाभ क्या है ?
सुखों में श्रेष्ठ सुख क्या है ?
युधिष्ठिर उवाच
धन्यानामुत्तमं दाक्ष्यं धनानामुत्तमं श्रुतम्।
लाभानां श्रेय आरोग्य सुखानां तुष्टिरुत्तमा।।२.१५.२।।
धन्य लोगों में वह मनुष्य श्रेष्ठ धन्य है , जिसमें दूसरों के उपकार करने की चतुराई है।
धनों में विद्या श्रेष्ठ धन होती है।
लाभों में रोग मुक्त्त रहना ही श्रेष्ठ लाभ है।
संतुष्ट रहना ही सुखों में सबसे बड़ा सुख है।
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