यक्ष उवाच
किं ज्ञानं प्रोच्यते राजन् कः शमश्र्च प्रकीर्तितः।
दया च का परा प्रोक्त्ता किं चार्जुवमुदाहृतम्।।२.२३.१।।
हे राजन् ! श्रेष्ठ ज्ञान क्या है ?
शम क्या है ?
श्रेष्ठ दया क्या है ?
आर्जव क्या है ?
युधिष्ठिर उवाच
ज्ञानं तत्त्वार्थसम्बोधः शमश्र्चित्तप्रशान्तता।
दया सर्वसुखैषित्वमार्जवं समचित्तता।।२.२३.२।।
उत्तम ज्ञान तत्वों का ज्ञान है।
मन की शांति ही शम है।
सब लोगों का सुख चाहना ही दया है।
समचित्तता अर्थात् समदर्शीपन ही सरलता है।
किं ज्ञानं प्रोच्यते राजन् कः शमश्र्च प्रकीर्तितः।
दया च का परा प्रोक्त्ता किं चार्जुवमुदाहृतम्।।२.२३.१।।
हे राजन् ! श्रेष्ठ ज्ञान क्या है ?
शम क्या है ?
श्रेष्ठ दया क्या है ?
आर्जव क्या है ?
युधिष्ठिर उवाच
ज्ञानं तत्त्वार्थसम्बोधः शमश्र्चित्तप्रशान्तता।
दया सर्वसुखैषित्वमार्जवं समचित्तता।।२.२३.२।।
उत्तम ज्ञान तत्वों का ज्ञान है।
मन की शांति ही शम है।
सब लोगों का सुख चाहना ही दया है।
समचित्तता अर्थात् समदर्शीपन ही सरलता है।
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