सोमवार, 21 मार्च 2016

२.२१ श्रेष्ठ

यक्ष उवाच
का दिक्किमुदकं प्रोक्त्तं किमन्नं किं च वै विषम्।
श्राद्धस्य कालमाख्याहि ततः पिब हरस्व च।।२.२१.१।।

दिशाओं में कौन - सी दिशा श्रेष्ठ है ?
जलों में श्रेष्ठ जल कौन - सा  है ?
विषों में प्रभावशाली विष कौन - सा है ?
अन्नों में श्रेष्ठ अन्न कौन - सा है ?
श्राद्ध करने का श्रेष्ठ फल कौन - सा  है ?
हे राजन् ! तुम मेरे इन प्रश्नों का उत्तर देकर जल ग्रहण करो तथा ले भी जाओ।

युधिष्ठिर उवाच
सन्तो दिग्जलमाकाशं गौरन्नं प्रार्थना विषम्।
श्राद्धस्य ब्राह्मणः कालः कथं वा यक्ष मन्यसे।।२.२१.२।।

संत लोग उत्तम दिशा अर्थात् शुभमार्ग बताने वाले हैं।
बादल का जल सर्वश्रेष्ठ जल है।
उत्तम अन्न जीवन रूप गौ है।
याचना अर्थात् किसी से कुछ मांगना सबसे प्रभावशाली विष है।
श्राद्ध का उत्तम फल वह है , जब श्रेष्ठ ब्राह्मण मिले।
हे यक्ष! मैं तो ऐसा ही मानता हूँ , आप किस तरह मानते हैं , बताइये ?
 

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