समवेक्ष्येह धर्मार्थौ सम्भारान् योऽधिगच्छति ।
स वै सम्भृतसम्भारः सततं सुखमेधते।।४.२४।।
जो व्यक्त्ति इस संसार में धर्म तथा अर्थ दोनों पर भली -भांति विचार कर अपने साधनों को संग्रह करता है , तो वह साधन सामग्री से युक्त्त होने के कारण सदा सुखपूर्वक रहता है।
स वै सम्भृतसम्भारः सततं सुखमेधते।।४.२४।।
जो व्यक्त्ति इस संसार में धर्म तथा अर्थ दोनों पर भली -भांति विचार कर अपने साधनों को संग्रह करता है , तो वह साधन सामग्री से युक्त्त होने के कारण सदा सुखपूर्वक रहता है।
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