शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

४.३० बुद्धि और विनाश

यस्मैः देवाः प्रयच्छन्ति पुरुषाय पराभवम्।
बुद्धिं तस्यापकर्षन्ति सोऽवाचीनानि पश्यति।।४.३०.१।।

देवतागण जिन व्यक्त्तियों को पराजय देते हैं , तो पराजय देने से पहले वह उसकी बुद्धि ही हर लेते हैं। बुद्धि चले जाने के कारण वह व्यक्त्ति नीच कर्मों पर ही अपनी दृष्टि रखता है।

बुद्धौ कलुषभूतायां विनाशे प्रत्युपस्थिते।
अनयो नयसंकाशो हृदयान्नापसर्पति।।४.३०.२।।

जब व्यक्त्ति का विनाश होने वाला होता है , तो उस व्यक्त्ति की बुद्धि मलिन हो जाती है।  फिर उस व्यक्त्ति के हृदय से न्याय की तरह लगने वाली अन्यायपूर्ण बातें भी उसके हृदय से बाहर नहीं निकलती हैं।


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