हिंसा बलमसाधूनां राज्ञां दण्डविधिर्बलम्।
शुश्रूषा तु बलं स्त्रीणां क्षमा गुणवतां बलम्।।४.२८।।
दुर्जनों की शक्त्ति हिंसा अर्थात् झगड़ा है। राजाओं की शक्त्ति उनकी दण्ड देने की प्रवृत्ति है स्त्रियों की शक्त्ति उनकी सेवा भाव है तथा गुणवान लोगों की शक्त्ति क्षमा है।
शुश्रूषा तु बलं स्त्रीणां क्षमा गुणवतां बलम्।।४.२८।।
दुर्जनों की शक्त्ति हिंसा अर्थात् झगड़ा है। राजाओं की शक्त्ति उनकी दण्ड देने की प्रवृत्ति है स्त्रियों की शक्त्ति उनकी सेवा भाव है तथा गुणवान लोगों की शक्त्ति क्षमा है।
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