शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

४.२३ काम तथा क्रोध

क्षुदाक्षेणैव जालेन झषावपिहितावुरू।
कामश्र्च राजन् क्रोधश्र्च तौ प्रज्ञानं विलुम्पतः।।४.२३।।

हे राजन् ! जिस तरह छोटे - बड़े छिद्रों वाले जल में फँसी दो बड़ी -बड़ी मछलियां उस जाल को काटकर नष्ट कर डालती हैं।  ठीक उसी तरह व्यक्त्ति का काम तथा क्रोध उसके ज्ञान को लुप्त कर देते हैं।

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