गुरुवार, 31 मार्च 2016

३.२२ आठ

अष्टौ पूर्वनिमित्तानि नरस्य विनशिष्यतः।
ब्राह्मनान्प्रथमंं द्वेष्टि ब्राह्मणैश्र्च विरुध्यते।।३.२२.१.१।।

ब्राह्मणस्वानि चादत्ते ब्राह्मणाश्र्च जिघांसति।
रमते निन्दया चैषां प्रशंसां नाभिनन्दति।।३.२२.१.२।।

नैनान्स्मरन्ति कृत्येषु याचितश्र्चाभ्यसूयति ।
एतान्दोषान्नरः प्राज्ञो बुध्येद् बुद्धवा विसर्जयेत्।।३.२२.१.३।।  

मनुष्य का विनाश करने वाले ये आठ कारण निम्नांकित हैं - वह ब्राह्मणों से द्वेष करता है, उनका विरोध करता है , ब्राह्मणों के धन का अपहरण कर लेता है , उनकी ह्त्या करना चाहता है , उनकी निंदा सुनकर आनंद की अनुभूति करता है , उनकी प्रशंसा सुनकर उनसे कुढ़ता रहता है , यज्ञ के समय उन्हें आमंत्रित नहीं करता है तथा कुछ मांगने पर उनमें दोष निकालता है।  बुद्धिमान व्यक्त्ति को इन बातों के परिणामों को जानकर इनका परित्याग कर देना चाहिये।

अष्टाविमनि हर्षस्य नवनीतानि भारत।
वर्तमानानि दृश्यन्ते तान्येव स्वसुखान्यपि।।३.२२.२.१।।

समागमश्र्च सखिभिर्महांश्र्चैव धनागमः।
पुत्रेण च परिष्वङ्गः सन्निपातश्र्च मैथुने।।३.२२.२.२।।

समये च प्रियालापः स्वयूथेषु समुन्नतिः।
अभिप्रेतस्य लाभश्र्च पूजा च जनसंसदि।।३.२२.२.३।।

 मित्रों के साथ मेल - जोल , अत्यधिक धन की प्राप्ति , पुत्र का मोह , स्त्रियों के साथ समागम की प्रवृत्ति , मधुर समय पर वचन बोलना , अपने वर्ग के लोगों में ऐश्र्वर्य प्राप्त करना , मनचाही वस्तु प्राप्त करना और समाज में मान - सम्मान पाना , ये आठ वस्तुयें मनुष्य को आनंद देने के साथ - साथ सुख प्रदान करने वाली भी होती हैं।

अष्टौ गुणाः पुरुषं दीप्यन्ति प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुतं च।
पराक्रमश्र्चाबहुभाषिता  च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च।।३.२२.३.१।।

निम्नांकित आठ गुण ऐसे हैं जो मनुष्य को संसार में प्रसिद्धि दिलाते हैं।  वे इस प्रकार हैं - बुद्धिमानी , कुलीनता , इन्द्रियों को वश में करने की प्रवृत्ति , शास्त्रविद्या , पराक्रम , काम बोलना , सामर्थ्य के  अनुसार दान करना , तथा कृतज्ञता अर्थात् दूसरों के उपकारों का मान करना।  इससे मनुष्य स्वतः ही यश पाता है।

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