गुरुवार, 31 मार्च 2016

३.३१ प्रिय मनुष्य

यो नोद्धतं कुरुते जातु वेषं च पौरुषेणापि विकत्थतेन्यान्।
न मूर्च्छितः कटुकान्याह किञ्चित् प्रियं सदा तं कुरुते जनो हि।।३.३१।।

जो कभी उद्दण्ड वेष धारण नहीं करता , दूसरों के समक्ष अपने पराक्रम की डींग नहीं हांकता , क्रोध आने पर भी कठोर वचन नहीं बोलता है , ऐसे मनुष्य सभी के प्रिय होते हैं।

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