गुरुवार, 31 मार्च 2016

३.२३ मनुष्य और ज्ञान, नौ तीन पाँच

नवद्वारमिदं वेश्म त्रिस्थूणं पञ्चसाक्षिकम।
क्षेत्रज्ञाधिष्ठितं विद्वान् यो वेद स परः कविः।।३.२३।।

जो विद्वान् पुरुष ( दो आँखें , दो  कान , दो नासाछिद्र , मुंह , मूत्रद्वार तथा मलद्वार ) नौ द्वार वाले ( वात , पित्त और कफरूपी ) तीन खम्भों वाले (शब्द , स्पर्श , रूप , रस और गन्धरूपी ज्ञानेन्द्रियों ) पाँच साक्षी वाले आत्मा के निवास स्थान इस शरीररूपी घर को जानता है।  वह बहुत बड़ा ज्ञानी होता है।  

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