गुरुवार, 31 मार्च 2016

३.२८ महापुरुष और शत्रु

प्राप्यापदं न व्यथते कदाचिदुद्योगमन्विच्छति चाप्रमत्तः।
दुःखं च काले सहते महात्मा धुरन्धरस्तस्य जिताः सपत्नाः।।३.२८।।

जो महापुरुष आपत्ति आने पर दुःखी नहीं होता , अपितु सावधानीपूर्वक श्रम करता रहता है , समय पर कष्ट सहन कर लेता है , ऐसे महापुरुष से उसके शत्रु तो हार ही जाते हैं।

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