गुरुवार, 31 मार्च 2016

३.२९ सुखी जीवन

अनर्थकं विप्रवासं गृहेभ्यः पापैः सन्धिं परदाराभिमर्शम्।
दम्भं स्तैन्यं पैशुनं मद्यपानं न सेवते यश्र्च सुखी सदैव।।३.२९।।

जो व्यक्त्ति बिना बात परदेस में नहीं रहता , पापीयों के साथ मेल - मेलाप नहीं रखता , दूसरी स्त्रियों के साथ नहीं रहता , पाखंड , चोरी , दूसरों की चुगली करने की आदत नहीं रखता और जो नशे का सेवन नहीं करता वह हमेशा सुखी जीवन व्यतीत करता है।

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