सप्त दोषाः सदा राज्ञा हातव्या व्यसनोदयाः।
प्रायशो यैर्विनश्यन्ति कृतमूला अपीश्र्वराः।।३.२१.१.१।।
स्त्रियोऽक्षा मृगया पानं वाक्पारुष्यं च पञ्चमम्।
महच्च दण्डपारुष्यमर्थदूषणमेव च ।।३.२१.१.२।।
स्त्री विषयक आसक्त्ति , जुआ , शिकार में लिप्त , मदिरापान , कठोर वचन , अत्यन्त कठोर दण्ड तथा धन का दुरूपयोग करना , ये सात दुःख प्रदान करने वाले दोष को राजा को परित्याग कर देना चाहिये ; क्योंकि इसके रहने से अत्यधिक बलवान् राजा का भी विनाश हो जाता है।
प्रायशो यैर्विनश्यन्ति कृतमूला अपीश्र्वराः।।३.२१.१.१।।
स्त्रियोऽक्षा मृगया पानं वाक्पारुष्यं च पञ्चमम्।
महच्च दण्डपारुष्यमर्थदूषणमेव च ।।३.२१.१.२।।
स्त्री विषयक आसक्त्ति , जुआ , शिकार में लिप्त , मदिरापान , कठोर वचन , अत्यन्त कठोर दण्ड तथा धन का दुरूपयोग करना , ये सात दुःख प्रदान करने वाले दोष को राजा को परित्याग कर देना चाहिये ; क्योंकि इसके रहने से अत्यधिक बलवान् राजा का भी विनाश हो जाता है।
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