गुरुवार, 31 मार्च 2016

३.२५ काम तथा क्रोध का परित्याग

यः काममन्यू प्रजाहति राजा पात्रे प्रतिष्ठापयते धनं च।
विशेषविच्छुतवान् क्षिप्रकारी तं सर्वलोकः कुरुते प्रमणम्।।३.२५।।

जो राजा काम तथा क्रोध का परित्याग करता है , सुपात्र अर्थात् जरूरतमंद को धन देता है तथा विशेषज्ञ है , शास्त्रों का ज्ञाता है और अपने कर्त्तव्य को शीघ्र ही पूर्ण कर लेता है। ऐसे राजा को सभी नमस्कार करते हैं।

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