यक्ष उवाच
किंस्वित्सुप्तं न निमिषति किंस्विज्जातं न चोपति।
कस्यस्विद्धदयं नास्ति किंस्विद्वेगेन वर्धते।।९.१।।
ऐसा कौन है , जो सोए हुए भी नेत्रों को बंद नहीं करता है ?
उत्पन्न होने वाला ऐसा कौन है , जो चलता नहीं ?
किसके हृदय नहीं होता है ?
अत्यधिक तेज गति से वृद्धि करने वाला कौन है ?
युधिष्ठिर उवाच
मत्स्यः सुप्तो न निमिषत्यण्डं जातं न चोपति।
अश्मनो हृदयं नास्ति नदी वेगेन वर्धते।।९.२।।
सोया हुआ मत्स्य अपने नेत्रों को बंद नहीं करता।
जन्म लेने वाला यह ब्रह्माण्ड स्थिर है।
पत्थर का हृदय नहीं होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि योगी के हृदय में मोह , शोक आदि नहीं होता।
तेज़ गति से बढ़ने वाली नदी होती है। अर्थात् सुषुप्ति अवस्था को प्राप्त योगी का चित्त नदी के सदृश है।
किंस्वित्सुप्तं न निमिषति किंस्विज्जातं न चोपति।
कस्यस्विद्धदयं नास्ति किंस्विद्वेगेन वर्धते।।९.१।।
ऐसा कौन है , जो सोए हुए भी नेत्रों को बंद नहीं करता है ?
उत्पन्न होने वाला ऐसा कौन है , जो चलता नहीं ?
किसके हृदय नहीं होता है ?
अत्यधिक तेज गति से वृद्धि करने वाला कौन है ?
युधिष्ठिर उवाच
मत्स्यः सुप्तो न निमिषत्यण्डं जातं न चोपति।
अश्मनो हृदयं नास्ति नदी वेगेन वर्धते।।९.२।।
सोया हुआ मत्स्य अपने नेत्रों को बंद नहीं करता।
जन्म लेने वाला यह ब्रह्माण्ड स्थिर है।
पत्थर का हृदय नहीं होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि योगी के हृदय में मोह , शोक आदि नहीं होता।
तेज़ गति से बढ़ने वाली नदी होती है। अर्थात् सुषुप्ति अवस्था को प्राप्त योगी का चित्त नदी के सदृश है।
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