यक्ष उवाच
किं क्षत्रियाणां देवत्वं कश्र्च धर्मः सतामिव।
कश्र्चैषां मानुषो भावः किमेषामसतामिव।।४.१।।
क्षत्रियों में देवत्व क्या है ?
उनका श्रेष्ठ धर्म कौन - सा है ?
उनका मानुष भाव क्या है ?
उनका असत् आचरण कौन - सा है ?
युधिष्ठिर उवाच
इष्वणस्तेषां देवत्वं यज्ञ एषां सतामिव।
भयं वै मानुषो भावः परित्यागोऽसतामिव।।४.२।।
क्षत्रियों का परम धर्म धनुर्विद्या ही है।
यज्ञ करना ही इनका श्रेष्ठ आचरण है।
भय ही उनका मानुष भाव है।
शरण में आए हुए को छोड़ देना ही इनका असत् आचरण है।
किं क्षत्रियाणां देवत्वं कश्र्च धर्मः सतामिव।
कश्र्चैषां मानुषो भावः किमेषामसतामिव।।४.१।।
क्षत्रियों में देवत्व क्या है ?
उनका श्रेष्ठ धर्म कौन - सा है ?
उनका मानुष भाव क्या है ?
उनका असत् आचरण कौन - सा है ?
युधिष्ठिर उवाच
इष्वणस्तेषां देवत्वं यज्ञ एषां सतामिव।
भयं वै मानुषो भावः परित्यागोऽसतामिव।।४.२।।
क्षत्रियों का परम धर्म धनुर्विद्या ही है।
यज्ञ करना ही इनका श्रेष्ठ आचरण है।
भय ही उनका मानुष भाव है।
शरण में आए हुए को छोड़ देना ही इनका असत् आचरण है।
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