रविवार, 20 मार्च 2016

२.८ सबसे उत्तम

यक्ष उवाच
किं स्विद्गुरुतरं भूमेः किंस्विदुच्चतरं च खात्।
किं स्विच्छीघ्रतरं वायोः किं स्विद्वहुतरं तृणात् ।।८.१।।

पृथ्वी से विशाल कौन होता है ?
आकाश से ऊँचा कौन होता है ?
पवन से अधिक तेज गति वाला कौन है ?
तृण से भी अधिक तुच्छ क्या है ?

युधिष्ठिर उवाच
माता गुरुतरा भूमेः खात्पितोच्चतरस्तथा।
मनः शीघ्रतरं वाताच्चिन्ता बहुतरी तृणात्।।८.२।।

माता धरती से भी अत्यधिक विशाल है।
पिता आकाश से भी अधिक उच्च है।
चित्त पवन से भी अधिक तेज गति वाला है।
चिन्ता तृण से भी अधिक तुच्छ एवं निकृष्ट है।
  

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